म्यूचुअल फंड के प्रकारों के बारे में सबकुछ, जो आपको जानना चाहिए
क्या आप जानते हैं कि म्यूचुअल फंड क्या हैं? अगर हां, तो यह समझने का सही समय है कि
म्यूचुअल फंड के प्रकार कौन से हैं, जो आपके लिए उपलब्ध हैं. यह ज़रूरी है, क्योंकि इससे आपको बेहतरीन विकल्प चुनने की सुविधा मिलेगी और आप अपने निवेश में विविधता ला सकेंगे.
अगर आप
म्यूचुअल फंडमें दिलचस्पी रखते हैं और जानना चाहते हैं कि इनमें कौन-कौन सी स्कीमें उपलब्ध हैं, तो आप अवश्य ही आश्चर्यचकित हो जाएंगे. निवेशक के पास चुनने के लिए अनगिनत फंड स्कीमें होती हैं, इसलिए फैसला सोच-समझकर लेना चाहिए.
म्यूचुअल फंड को एसेट क्लास के आधार पर, इन कैटेगरी में बांटा जाता है.
- इक्विटीज़ (या स्टॉक): ये म्यूचुअल फंड की सबसे बड़ी कैटगरी को दर्शाते हैं. ये वे फंड हैं जिनके ज़रिए इक्विटी मार्केट में इन्वेस्टमेंट किए जाते हैं. इन्हें, इस तरह की कैटेगरी में बांटा जा सकता है :
- लार्ज-कैप:
लार्ज-कैप फंड वे फंड हैं, जिनके जरिए सुव्यवस्थित कंपनियों में इन्वेस्ट किए जाते हैं. उनके स्टॉक की कीमतों में सबसे कम उतार-चढ़ाव होते हैं. इसलिए,
ये सबसे कम जोखिम वाले फंड हैं. -
मीडियम और स्मॉल कैप: इन फंड के ज़रिए अनिश्चित मार्केट में काम करने वाली छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों में इन्वेस्ट किए जाते हैं. अगर आर्थिक स्थिति
अच्छी होती है, तो वे बेहतर रिटर्न दिला सकते हैं, लेकिन ये लार्ज कैप वाली कंपनियों से अधिक जोखिम वाले फंड होते हैं. - सेक्टोरल फंड: ऐसे फंड जिनके जरिए खास सेक्टर में इन्वेस्ट किया जाता है, जैसे कि इन्फ्रास्ट्रक्चर, एफएमसीजी आदि. ये फंड, पोर्टफोलियो में सबसे अधिक जोखिम वाले होते हैं, क्योकि
ये केवल एक ही सेक्टर से जुड़े होते हैं.
- फिक्स्ड इनकम (बॉन्ड्स): ये फंड डिबेंचर और सरकारी सिक्योरिटीज़ जैसे बॉन्ड मार्केट में इन्वेस्टमेंट करते हैं. वे बड़े कॉर्पोरेशन को उधार देने की सामान्य अवधारणा का पालन करते हैं.
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मनी मार्केट फंड: मनी मार्केट में इन्वेस्ट करने वाले फंड में ट्रेजरी बिल, कमर्शियल पेपर जैसे शॉर्ट टर्म डेट विकल्प शामिल होते हैं. आमतौर पर, इनमें कम जोखिम और कम रिटर्न होते हैं.
इसी प्रकार के कुछ अन्य फंड हैं:
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इंडेक्स फंड: ऐसे फंड हैं, जो उन सभी शेयरों में निवेश करते हैं, जिनमें "इंडेक्स" शामिल होता है, जैसे बीएसई सेंसेक्स या एस व पी निफ्टी. इन्वेस्टमेंट का अनुपात उन सभी में एक समान होता है. इसमें पैसिव इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी का इस्तेमाल होता है, क्योंकि इस इन्वेस्टमेंट स्टाइल में ऐक्टिव स्टॉक चुने जाने की प्रक्रिया शामिल नहीं है.
- क्वांट फंड: ये फंड कंपनी के अंतर्निहित बिज़नेस पर रिसर्च करके स्टॉक चुनने के बजाय, क्वांटिटेटिव मेथड (मात्रात्मक विधियों) का उपयोग करते हैं.
यहां इन्वेस्ट करने के आधार पर वर्गीकरण दिया गया है: - क्लोज़्ड-एंड फंड: क्लोज़्ड-एंड फंड को इन्वेस्टर केवल तभी ले सकते हैं, जब स्कीम की घोषणा की जाती है और यह स्कीम समाप्त होने पर मेच्योर हो जाती है. इसलिए, इसकी एक निश्चित अवधि (आमतौर पर 3 से 15 वर्ष तक) होती है. सूचीबद्ध होने पर क्लोज़्ड-एंड फंड को अन्य स्टॉक की तरह ही ट्रेड किया जा सकता है
इसके लिए, इनका एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होना ज़रूरी है. इसके अलावा, इन्हें ओटीसी (काउंटर पर) ट्रेड किया जा सकता है - ओपन-एंड फंड: ओपन-एंड फंड, सब्सक्रिप्शन/रिडेम्पशन के लिए पूरे साल उपलब्ध होता है. दूसरे शब्दों में, इस फंड में
इन्वेस्टर किसी भी समय इन्वेस्ट कर सकते हैं और कभी भी पैसे निकाल सकते हैं.
मिलने वाली आय के तरीके के आधार पर वर्गीकरण:
- डिविडेंड प्लान जो इन्वेस्टर को, लाभांश के रूप में रिटर्न प्रदान करते हैं.
- ग्रोथ प्लान, पैसे को निकाले जाने तक पैसे को इन्वेस्ट रहने की सुविधा देता है.
प्लान या स्कीम के आधार पर फंड का बंटवारा:
- रेगुलर प्लान में शामिल फंड के लिए बिचौलियों की मदद ली जाती है. बिचौलिए, फाइनेंशियल सलाह जैसी अतिरिक्त सेवाएं प्रदान करते हैं. इनकी वजह से, इन प्लान पर अधिक लागत आती है.
- डायरेक्ट प्लान सीधे एएमसी से खरीदे जाते हैं. इसमें बिचौलिए न होने की वजह से इनकी ट्रांजैक्शन लागत कम होती है.
डिस्क्लेमर
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