सप्ताह की फाइनेंशियल टर्म - कूपन रेट
जब किसी कंपनी को अपने बिज़नेस का विस्तार करने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है, तो वह या तो अपने शेयर लोगों को बेच सकती है और पैसे जुटा सकती है; या वह बॉन्ड्स जारी कर सकती है. यदि आप किसी कंपनी से बॉन्ड खरीते हैं, तो इसका मतलब है कि आप लेंडर हैं, और कंपनी ने आपसे पैसे उधार लिए हैं. अब, इसमें आपके लिए क्या है? जब आप किसी कंपनी से बॉन्ड खरीदते हैं, तो वह एक निश्चित ब्याज दर के वादे के साथ आता है, जिसका भुगतान आपको वार्षिक/अर्ध-वार्षिक या मेच्योरिटी पर किया जाता है. इस ट्रांजैक्शन में यह आपकी कमाई है. इस ब्याज को कूपन रेट कहा जाता है और इसे बॉन्ड के फेस वैल्यू के एक प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है.
जब कोई कंपनी बॉन्ड जारी करती है, तो वह कुछ बातें स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करती है, जिनमें से ये तीन बातें महत्वपूर्ण होती हैं-
- फेस वैल्यू
- कूपन रेट
- मेच्योरिटी
यदि आप किसी कंपनी के 100 बॉन्ड को 200 रुपये प्रति बॉन्ड पर खरीदते हैं, तो रु. 200 फेस वैल्यू है, और आपकी मूल राशि रु. 20,000 है. अगर कंपनी ने सालाना 10% ब्याज घोषित किया है, तो यह आपका कूपन रेट है. इसका मतलब है कि ₹ 20000 का 10%, यानी ₹ 2000, वह राशि है जो आप वार्षिक रूप से अर्जित करेंगे. इसके अलावा, अगर बॉन्ड की मेच्योरिटी 5 वर्ष है, तो इसका मतलब है कि आपको 5 वर्षों के लिए प्रति वर्ष रु. 2000 मिलेंगे और 5 वर्षों के अंत में, आपको अपने मूलधन के रु. 20,000 वापस मिलेंगे.
कृपया ध्यान दें कि विभिन्न कंपनियों के अलावा, सरकार भी पूंजी जुटाने के लिए बड़े पैमाने पर जनता को बॉन्ड्स जारी कर सकती है.
ज़ीरो-कूपन बॉन्ड्स क्या हैं?
अब, यह ज़रूरी नहीं है कि बॉन्ड जारी करने वाली कंपनी निवेशक को हमेशा वार्षिक ब्याज का भुगतान करे. ज़ीरो-कूपन बॉन्ड्स या डिस्काउंट बॉन्ड्स वह हैं जो मेच्योरिटी तक बॉन्ड धारक को कोई वार्षिक ब्याज नहीं देते. इसके बजाय, बॉन्ड खरीदते समय उन्हें फेस वैल्यू पर छूट दी जाती है. उनका लाभ उनकी खरीद कीमत और मेच्युरिटी पर उनको वापिस मिलने वाले बॉन्ड के वास्तविक फेस वैल्यू के बीच के अंतर से आता है.
डेट म्यूचुअल फंड निवेशकों को, कूपन रेट्स के बारे में क्या पता होना चाहिए?
डेट म्यूचुअल फंड विभिन्न कंपनियों के बॉन्ड्स में निवेश करते हैं और इन बॉन्ड्स के पोर्टफोलियो को सक्रिय रूप से मैनेज करते हैं. एक डेट फंड निवेशक के रूप में, आपको कूपन रेट और फंड की आय के बीच का अंतर पता होना चाहिए. आय को कई तरीकों से मापा जा सकता है, जिनमें से 3 सबसे आम उपाय इस प्रकार हैं-
यदि बॉन्ड्स के मार्केट प्राइस, ब्याज दरों या बॉन्ड प्राइस को प्रभावित करने वाले अन्य बाहरी कारकों में कोई बदलाव नहीं होता, तो कूपन रेट और वर्तमान आय वायटीएम के समान होगी. हालांकि, उपरोक्त उदाहरण में बॉन्ड की फेस वैल्यू रु 200 है, लेकिन अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव, क्रेडिट जोखिम, बॉन्ड की मांग आदि के कारण बॉन्ड के मार्केट प्राइस में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं.
इसलिए, वर्तमान आय, बॉन्ड के प्रचलित मार्केट प्राइस के आधार पर किसी भी समय दिया गया रिटर्न है. जब किसी बॉन्ड को फेस वैल्यू पर खरीदा जाता है, तो वर्तमान आय कूपन रेट के समान होती है, जो परिणामस्वरूप वायटीएम के समान होती है. लेकिन मार्केट की स्थिति बदलते ही इन तीनों में अंतर आने लगता है. आइए इसे उदाहरण से समझते हैं.
यदि बॉन्ड की फेस वैल्यू रु. 1000 है और कूपन रेट 6% है, तो इसका मतलब यह है कि अगर आप इसे खरीदते हैं और मेच्योरिटी तक बनाए रखते हैं, तो आपको प्रति वर्ष रु. 60 मिलेगा. यहां, कूपन रेट 6% है. अगर आप फेस वैल्यू पर बॉन्ड खरीदते हैं, तो यह सही होगा. अब, अगर आप इसे छूट यानी रु. 950 पर खरीदें तो? इस मामले में आय रु. 60/रु.950= 6.31% हो जाती है. अब, यह 6.31% बॉन्ड की वर्तमान आय है और यह उस बॉन्ड के मार्केट प्राइस पर निर्भर करती है जिस पर इसे ट्रेड किया जा रहा है. मेच्योरिटी पर आय (वायटीएम) वार्षिक आय और छूट पर बॉन्ड खरीदने से प्राप्त आय को जोड़कर, उसपर प्राप्त ब्याज दर है. आप इसके बारे में
यहां पढ़ सकते हैं.
निष्कर्ष-
यदि आप किसी डेट फंड में लंबे समय के लिए निवेश कर रहे हैं और मेच्योरिटी से पहले अपने बॉन्ड को बेचना नहीं चाहते, तो आप केवल कूपन रेट पर ध्यान दें, क्योंकि मेच्योरिटी तक आप इसी से आय अर्जित करेंगे. लेकिन यदि आप लंबे समय के लिए निवेश नहीं करना चाहते, तो बाजार की आय का रिटर्न पर असर पड़ सकता है.