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आय और बॉन्ड की कीमतों में संबंध

बॉन्ड्स फाइनेंशियल मार्केट का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और कॉर्पोरेट और सरकार के लिए पूंजी के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते हैं. जब फिक्स्ड-इनकम सिक्योरिटीज़ में ट्रेडिंग की बात आती है, तो बॉन्ड से आय की अवधारणा को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है. म्यूचुअल फंड के क्षेत्र में, कर्ज़-आधारित फंड जैसे कि शॉर्ट-टर्म म्यूचुअल फंड, निवेशक को निवेश की कम या मध्यम अवधि और अच्छे रिटर्न का अवसर प्रदान करने के लिए बॉन्ड में निवेश करते हैं.

आइए, हम बॉन्ड और उन्हें प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में और अधिक जानें.

बॉन्ड क्या है?

यह एक डेट विकल्प है, जिसमें इन्वेस्टर को ब्याज भुगतान के माध्यम से स्थिर इनकम प्राप्त होती है और पूर्व-निर्धारित मेच्योरिटी तिथि पर मूलधन का पुनर्भुगतान होता है.

ध्यान देने योग्य बातें

1 बॉन्ड की कीमत:
सीधे शब्दों में कहें, तो यह बॉन्ड के भविष्य के कैश फ्लो की वर्तमान वैल्यू है. बॉन्ड की आपूर्ति और मांग के अनुसार बॉन्ड की कीमतें बढ़ती या गिरती हैं.

2 कूपन दर:
यह बॉन्ड के फेस वैल्यू पर जारीकर्ताओं द्वारा खरीदारों को भुगतान की जाने वाली आवधिक ब्याज दर है.

3 फेस वैल्यू:
इसे प्रति-वैल्यू (सममूल्य) भी कहा जाता है, यह वह प्राइस है, जिसका बॉन्ड जारीकर्ता, बॉन्ड की मेच्योरिटी के समय भुगतान करता है

4 बॉन्ड से आय:
यह निर्धारित समय में प्राप्त होने वाली संभावित आय है, जिसे प्रतिशत द्वारा दर्शाया जाता है.

5 Yield to maturity:
यह एक बॉन्ड पर अनुमानित कुल रिटर्न है, अगर इसे मेच्योरिटी तक रखा जाता है.

बॉन्ड की कीमत और आय के बीच संबंध

आय और बॉन्ड प्राइस में महत्वपूर्ण, लेकिन विपरीत संबंध है. जब बॉन्ड प्राइस फेस वैल्यू से कम होती है, तो बॉन्ड की आय कूपन दर से अधिक होती है. जब बॉन्ड प्राइस फेस वैल्यू से अधिक होती है, तो बॉन्ड की आय कूपन दर से कम होती है. इसलिए, बॉन्ड की आय की गणना, बॉन्ड प्राइस और बॉन्ड की कूपन दर पर निर्भर करती है. अगर बॉन्ड की प्राइस गिरती है, तो आय बढ़ जाती है, और अगर बॉन्ड की प्राइस बढ़ती है, तो आय कम होती है. आइए, समझते हैं कि ऐसा क्यों है:

1 जब ब्याज दरें गिरती हैं, तो इससे संबंधित इन्वेस्टमेंट की वैल्यू में गिरावट आती है. हालांकि, जारी किए गए बॉन्ड इसससे प्रभावित नहीं होंगे. वे शुरुआत में जारी कूपन दर के समान ही भुगतान करते रहेंगे, जो लागू ब्याज दर से अधिक दर पर होंगे. उच्च कूपन दर, इन बॉन्ड को प्रीमियम पर खरीदने के इच्छुक इन्वेस्टर्स के लिए आकर्षक बनाती है.

2 इसके विपरीत, जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो नए बॉन्ड मौजूदा बॉन्ड की तुलना में इन्वेस्टर्स को बेहतर ब्याज दरों का भुगतान करेंगे. यहां, पुराने बॉन्ड कम आकर्षक होते हैं और क्षतिपूर्ति के रूप में उनकी कीमतें कम हो जाएंगी और वे रियायती मूल्य पर बेची जाएंगी

बॉन्ड की कीमत और आय के बीच के विपरीत संबंध के उदाहरण

उदाहरण 1

₹ 5000 की कीमत और ₹200 की कूपन राशि के साथ 10-वर्ष का बॉन्ड है. इस बॉन्ड से आय की गणना नीचे दिए गए फॉर्मूले के अनुसार की जाती है

● आय= बांड पर ब्याज / बॉन्ड की मार्केट प्राइस x 100
● आय = (200/5000) x 100% = 4%

मान लें कि बॉन्ड की कीमत इन्वेस्टर की ज़ोरदार मांग के कारण ₹5000 से बढ़कर ₹5500 हो जाती है. अब बॉन्ड उसकी जारी होने की कीमत से 10% अधिक कीमत पर ट्रेड करता है. कूपन की राशि ₹200 पर समान रहती है.

● अब आय की राशि होगी (200/5500) x 100% = 3.64%

बॉन्ड की कीमत बढ़ गई है, जिससे बॉन्ड पर आय कम हो जाती है.

उदाहरण 2

अब मान लें कि ऊपर दिए गए बॉन्ड की कीमत कम हो जाती है.

● बॉन्ड की शुरुआती कीमत = ₹5000
● कूपन = ₹ 200
● बॉन्ड की कीमत ₹4300 तक गिरती है
● कूपन ₹ 200 ही रहता है
● अब आय है (200/4300) x 100% = 4.65%

बॉन्ड की कीमत और बॉन्ड की आय के बीच विपरीत संबंध होने के कारण, आय अब बढ़ चुका है. आप इसी तरह के लाभों के लिए शॉर्ट-टर्म म्यूचुअल फंड में भी निवेश कर सकते हैं.

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